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नीलम कटारा बनाम फेमिनिस्ट

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कई वर्ष पहले मेरे पति नीलम कटारा से एक यात्रा के दौरान मिले थे ।मेरे पति ने उनसे मिलकर पूछा था ,” आप नीलम कटारा जी हैं ना , आपका संघर्ष देख कर हौसला मिलता है। ” बदले में जो नीलम जी ने जो कहा वो था ,” जी हाँ मैं ही नीलम हूँ , नितीश और नितिन की माँ और मेरे बेटे के कातिलों के लिए यह सज़ा ही बहुत बड़ी है कि उनको कोर्ट में घंटो इंतज़ार करना पड़ता है । ” तब उनको शक था कि उन्हें न्याय मिलेगा या नहीं । यह शब्द उस माँ के थे जिसके बेटे के कातिलों को आज कोर्ट ने सजा सुना दी है। उसकी तपस्या आज सफल है , मीडिया के गलियारों में थोड़ी हलचल है ,मगर वैसी नहीं जैसी अमूमन किसी महिला के लिए होती है , क्यों ? फेमिनिस्ट भी चुप हैं , नीलम कटारा  फेमिनिस्ट आइकॉन नहीं हैं क्यों ? कैसे एक घटिया चिट्ठी , ट्वीट या बरसों पुरानी घटना कह भर देने से कोई महिला ब्रेवहार्ट बन जाती है और पुरुष महिला को सम्मान देने वाला बन जाता है मगर इतनी बड़ी लडाई ज्यादा बड़ी खबर नहीं बन पायी ? यहाँ हत्या एक बेटे की हुई थी , उस बेटे का कसूर था एक रसूखवाले की बेटी से प्रेम करना।  अगर बेटी मारी जाती तो वो ऑनर किलिंग होती , मगर मारा गया बे