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Showing posts from February, 2010
है कुछ लड़कपन सा आज भी जो छलक जाता है कभी कभी है कुछ बचपन सा आज भी जो बीता है बस अभी अभी है कुछ सुगठित सा आज भी जो न जाने क्यों बिखरता जाता है है कुछ वोह रातें आज भी जो जाने क्यों बेचैन गुजरती है है कुछ एहसासों की कसक आज भी जो धुंधली पड़ती जाती है है कुछ रिश्तों का दर्द आज भी जो जाने क्यों तड़पाता है जब है सब कुछ वह आज भी तो मिल ही जाता फिर कभी कहीं.